मौत
मौत
कभी करीब से देखो मौत को परवानो कि तरह,
तो उसके दामन में गिरे अश्क में भीग जाने को दिल हो ही जायेगा।
शब-ओ-रोज जलते खंबो के नीचे पड़े कोई भी परवाने से पूछो लुत्फ मर जाने में,
तो जलती हुई शमा से इश्क हो ही जायेगा।
है ये कैसा मज़ाक, है ये तमाशा कैसा,
सामने तेरे खाक बन पिघलता है कोई हर दिन और तब भी ये सोचता हे आदमी हर पल हर दम यू़ँ जीता ही जायेगा।
ना जाने क्या खौफ हे मर जाने का लोगों में,
इससे एक बार मुलाकात करके तो देखो,
जो बगीचा है गम-ए-आलम का उसमें हर एक फूल मुरझा ही जायेगा।
रोते तो वो है जो अब भी हिस्सेदार हैं इस फरीब-ए-नज़र जिंदगी के,
सफेद चादर में ढका लाश का पुतला तो हँसते हँसते अलविदा कह ही जायेगा।