मौसम के तेवर
मौसम के तेवर
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उफ, चिलचिलाती रवि किरणें,
श्वेद से धुली कमीज से आती उबकाई देती गंध,
काश किरणों के तेवर बदल जाए।
दाँतों को किटकिटाती,
हाड़ माँस को जमाती,
धरती के बिस्तर पर सोये,
गगन को लपेटे जीव को,
मुर्दा में बदलती ये शीत लहरें,
रिमझिम बूंदों को कब लाएगी ?
कड़कड़ाती बिजली,
गरजते बादलों का आक्रोश,
टपकती छत,
बाँध पानी में डूबा घर,
मरते मवेशी
अब रूठा रवि फिर कब मानेगा ?
वह गरीब है साहब
हर मौसम उसके लिए नए दर्द का सबब है
खुश होने और
उत्सव मनाने का नहीं।