STORYMIRROR

Vikas Maurya

Abstract

5.0  

Vikas Maurya

Abstract

मैंने देखा है

मैंने देखा है

1 min
307


तुमने देखा नहीं जो हमने देखा है,

इश्क़ के सितम, हमने सह कर देखा है।


प्यार से जो मेरी जान, जान कहती थी,

मैंने उसका तन्हाइयो में रोना देखा है।


चार दिन के लोगों को अपना बनाना

वर्षो के प्यार को भी खोते देखा है।


वो आज भले ही खुश नहीं, मुझे पता है

पर गुरुर में उसका हँसता चेहरा देखा है।


कहा हो प्यार को खुदा कहने वालों,

मैंने इस खुदा को नीलाम होना देखा है।


अब सब खत्म हो गया, फिर याद करती है

मैंने खुद को हिचकियां लेते देखा है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract