मैं स्त्री
मैं स्त्री
मुस्कुराहट से खिलते हैं फूल
गुनगुनाहट से चलती है श्वास
नदी की मानिंद बहती हो
बहता है जीवन संसार।
हर दुविधा में, संघर्षों में
दुख हो या पीड़ा में
डगमगाते नहीं कभी कदम
भरी हो साहस से, हर पल
खिलती हो फूलों सी।
बनी रहती कोमलता,
खुशबू भरी स्वच्छता,
आचँल में समेटती हो,
मृदुता को धरती का सौभाग्य हो।
धरती के भाल पर
सूरज सी बिन्दी सम,
तुम बिन नहीं दुनिया का विस्तार
तुम ही प्रकृति, तुम ही शक्ति।
तुम ही विधाता का
अनुपम उपहार ,
तुम हो स्त्री, तुम हो मां।
तुम से ही है, ये संसार।
