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Pratibha Joshi

Inspirational

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Pratibha Joshi

Inspirational

मैं स्त्री सर्वगुण सम्पन्न

मैं स्त्री सर्वगुण सम्पन्न

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कर रहे लेखनी अपनी से, बातें लेखक बड़े बड़े दो,

देते लेखनी में अपने भावों को स्त्री के स्त्री होने के,

पहला लेखक लिखे, “स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी”,

लिखे लेखक दूसरा “कौन हो तुम ललकारने वाले”?

खड़ी देहली पर स्त्री देखे अब दोनों तरफ,


बोली सही तुम दोनों अपनी जगह, अब मैं बोलूंगी,

मैं स्त्री सर्वगुण सम्पन्न लिए भावनाएं नित्य नयी नयी,

लड़की बन घर जन्मी पिता के, बन आयी लक्ष्मी,

दिया साथ माँ का, न देखा कंधा अपना छोटा बड़ा,

बांधी राखी भाई को, दिए आशीष जीवन भर के,


विदा आई संग पिया के, नए जीवन अपने दूसरे,

भूल बातें बना यादें, देने लगी साथ सुख दुःख में,

लायी नवजीवन जहाँ में चलने संग संग अपने,

करती उनका पालन पोषण बनती गुरु पहली, 

कंधा नहीं, अब हो गयी खुद खड़ी आगे विपदा में,


बीता समय, समय की धुन में चले वे आगे आगे मेरे,

मन बसाये गृहस्थी में, अब जाना जहाँ दूसरे,

भावनाओं को पकड़ना छोड़ना, देख पल को जानूँ मैं,

जीवन संघर्ष मेरा, सह जाती सब मुस्कान लिए चेहरे पे, 

राम बन ले नहीं सकती अग्निपरीक्षा प्रिया की,

ना ले सकती लांछनों को कृष्ण सी मुस्कुराते,


मैं स्त्री सर्वगुण सम्पन्न, होते सहमत मुझसे पहले,

लाज शर्म की लिए मर्यादाएं, निभाऊं रिश्ते अपने,

लड़ सकती मैं बन दुर्गा, झुकती सिर्फ सिखाने मर्यादाएं,

हाँ हूँ मैं भी अभिमानी, देख सफलताएँ अपनों की,

हाँ लालची भी, दे थोड़ा, मांगूँ रब से भर भर आशीष,

मैं स्त्री सर्वगुण सम्पन्न लिए भावनाएं नित्य नयी नयी।



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