मैं स्त्री हूं
मैं स्त्री हूं
मैं एक स्त्री हूं
कल वह मुझसे मिलने आई।
बोली मैं तेरी परछाई हूं ।तुझसे मिलने आई हूं।
तू खुद को ही ढूंढ रही थी ।तो यह बताने आई हूं।
तू है ईश्वर की एक अनुपम कलाकृति।
जिसे ईश्वर ने नवाजा है अलग-अलग बहुत रूपों में कभी बेटी।
कभी बहन, कभी पत्नी ,बहू, सास, भाभी, मां।,
इन सबसे अलग तुझे अपने आप में रहना सिखाया ।
तू है ईश्वर की अनुपम कलाकृति। तूने खुद को नहीं खोया ।
जवाबदारी यों को बहुत निभाया।
अब वापस अपने आप से नाता जोड़ा ।
पर भगवान को कभी ना छोड़ा।
गैरों को भी अपना बनाया।
दुश्मनी को कभी ना निभाया।
उसको भी प्यार से सींचा।
सब रिश्तो की साथ प्रेम सगाई
तू है दोस्तों की प्यारी।
तू है परिवार की प्यारी ।
तू है एक अनुपम नारी।
प्रेम शांति और संतोष है तेरा गहना
कभी ना तू इनको छोड़ना।
मुश्किलों से तू ना घबराई।
हर कठिनाई को पार करा है और मंजिलें सामने आई।
मैं तेरी परछाई हूं ।
तुझ में ही रहती हूं। आज तू अपने को ढूंढ रही
तुझे समझाने आई हूं।
तू हमेशा ऐसी ही रहना।
कभी ना तू खुद को खोना,
तू ऐसी ही रहना।