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Bharti Vashishtha

Inspirational

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Bharti Vashishtha

Inspirational

मैं सशक्त हूँ

मैं सशक्त हूँ

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न डरूँगी,न दबूंगी न सहूँगी

जीने आयी हूँ, जीकर रहूँगी।

तुम लाख काँटे बिछा देना राहों में

मंज़िल तो अपनी पाकर रहूँगी।


है सिर्फ तुम्हारी नज़र का फेर,

कमज़ोर हूँ, मजबूर हूँ,

कुछ सीमाओं में बंधी हूँ

या सम्मान है मर्यादाओं का,


जिस दिन छोड़ दिया,

उस दिन दुनिया बदल दूँगी।

अबला नहीं शक्ति हूँ,

यह साबित कर दूँगी।


छल कपट सीखी नहीं

धर्म निभाती आयी हूँ।

पर तुम सोचते हो

तुम्हारी जागीर हूँ।


मैं शिथिल नहीं सशक्त हूँ,

तुम्हें बता कर रहूँगी।

मेरी छवि की कल्पना क्या करोगे

ऐ मर्द तुम अपनी मंद बुद्धि से !


गुणों की खान हूँ

तुम्हें चौंकाकर रहूँगी।

गर छोड़ दिया शर्माना, लजाना

और अपना लिया

अपना तिरिया चरित्र,


पल भर को भी !

तुम थाह न ढूंढ पाओगे मेरी।

क्या मर्द बने फिरते हो !

तुम्हें तुम्हारी असली औकात

बता कर रहूँगी।


अभी तक नीलकंठ बन

जहर पी रही थी।

पर अब दर्द नहीं सहूँगी,

तुम्हारा मुझ पर लादा हुआ

जबरदस्ती का।


मैं अपनी जिंदगी

अपनी शर्तों पर जी कर रहूँगी।

कर्मठता देख मेरी

तुम समझे नहीं,


नपुंसक बन मेरे

चरित्र पर प्रहार किया।

अपनी इन्द्रियों को बाँध न सके,

तो तुमने मुझको बांध दिया !


अब और न सहूँगी,

अब ज्वाला बनूँगी।

अब खेल कर देखो तुम मुझसे,

तुम्हें अपनी अग्नि में भस्म करूँगी।


अब न रुकूँगी, अब न थमूँगी।

मैं जिंदा हूँ उस रब की दुआ से,

अब अपने हक़ के लिए लड़ूँगी,

मैं अपना अस्तित्व तराश कर रहूँगी।


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