मैं संस्कार हूँ
मैं संस्कार हूँ
पुराने महलों के खंडहर की शिनाख्त में मैं मिलूँगा
उसके आँगन में गिरे सूखे पत्तों के इतिहास में मैं मिलूँगा
दरक रही दीवारों की भुरभुरी मिट्टी में ,
छत से गिर रही ईंटों में मैं मिलूँगा
पहचाना.... शायद नहीं...
मैं उन धरोहरों की निशानियां हूँ
जिन्हें सम्भालने की ज़िम्मेदारी तुम्हें सौंपी गई थी
मैं तुम्हारे अतीत की कुछ यादें हूँ जो अब तुम्हें याद नहीं .... ख़ैर ....
गुज़रना हो कभी इधर से तो मुझसे मिलकर जाना
बातें करेंगे .... हो सकता है तुम्हें याद आ जाए कि मैं तुममें दबा हुआ संस्कार हूँ।