इश्क निभाया मैंने
इश्क निभाया मैंने
शिकस्त क़ुबूल कर किरदार निभाया मैंने
और वो ख़ुद की रसूख़ पर इतराता रहा
किसी ने पूछी नहीं जात उसकी
लिहाज़ा खुद को ईमानदार बताता रहा
मेरी कहानी को हर मोड़ पर
वो शक्ल बदल कर मिलता रहा
हादसे का ज़िक्र आया तो ख़ुद को बेगुनाह बताता रहा
फिर गुनाह क़ुबूल कर इश्क़ निभाया मैंने
तफ़्तीश होती तो सच का पता चलता ज़रूर
खैर.... धोखा ना करने का सुकून पाया मैंने

