मैं नदी हूंँ
मैं नदी हूंँ
मैं नदी हूंँ,
कुछ स्त्री जैसी हूंँ
जहांँ से मैं निकलती हूंँ
वहांँ लौट कर फिर नहीं जाती
अपना रास्ता खुद बनाती हूंँ,
मैं नदी हूंँ
कुछ स्त्री जैसी हूंँ।
लोगो के जीवन यापन का सहारा हूंँ
तो कइयों के आस्था का कारण,
स्वम् प्रदूषित होकर दूसरों को पुण्य देती हूंँ
तब भी मैं निश्चल, पवित्र सी हूंँ
मैं नदी हूंँ,
कुछ स्त्री जैसी हूंँ।
बहुत से लोग मुझमें अपना पाप धोते हैं,
कुछ वो भी हैं
जो अपने बहू -बेटियों संग पाप करते हैं।
उन्हे
ं अपनी पानी में उतरने से रोक नहीं पाती,
मैं कितनी मजबूर होती हूंँ
कुछ कह नहीं पाती,
मैं नदी हूं
कुछ स्त्री जैसी हूं।
चुपचाप सारे आडंबर देखती हूंँ
कभी अभिमान तो कभी तिरस्कार सहती हूंँ,
सुधरने के कई बार मौके देती हूंँ
फिर भी जब सही कुछ होता नहीं,
बाढ़ बनकर विनाश का रूप धर लेती हूंँ
फिर छोड़ती नहीं हूंँ मैं,
बड़े से बड़े अभिमानी को
घमंड उसका चूर- चूर कर देती हूंँ
मैं बहुत उग्र और प्रवाही हूंँ
मैं स्त्री ही हूंँ
मैं काली हूंँ।