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मैं जल हूँ...

मैं जल हूँ...

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मैं जल हूँ,

जीवन प्रश्न है

तो मैं हल हूँ,


मैं गर आज हूँ,

तो मैं कल हूँ…


मैं जल हूँ,

मैं बहती नदी का

बल हूँ,


मैं पेड़ पर

लगा फल हूँ,


मैं खेत में

लहराती फसल हूँ,


मैं धरा का

आँचल हूँ,


मैं बरसता

बादल हूँ,


मैं निर्मल

गंगाजल हूँ…


मैं जल हूँ,

हे मनुष्य !

तू मौत है,

मैं जीवन हूँ,


तू प्यास है,

मैं सावन हूँ,


तू एक क्षण है,

मैं कण-कण हूँ...


मैं जल हूँ,

मेरे होने से तुझमें साँस है,

मेरे होने से कुएँ-तालाब है,


तुम्हारा वजूद मिट्टी है,

मेरा वजूद जीने की आस है...


मैं जल हूँ,

पहाड़ चीर कर

मेरा कण-कण

तुम तक पहुँचा है,


हे मनुष्य,

तूने धरा की गहराइयों तक

मुझे नोचा है,


मैंने तुम्हें साँसे दी है,

तुमने मुझे हर दिन

धरा की गोद से भी खरोंचा है...


मैं जल हूँ,

हे मनुष्य

बन ना इतना समर्थ तू,

कि समझे मुझे व्यर्थ तू,


मैं हूँ तो जीवन हैं,

इस धरा को कर ना नरक तू,


तू ढूँढता रहेगा,

मैं एक दिन हवा हो जाऊँगा,


तू भी मिट जाएगा,

जब मैं खो जाऊँगा...

मैं जल हूँ,


हे मनुष्य

क्या मेरे बिना जी पायेगा तू ?


मुझे खोकर

ख़ुद को ही मिटाएगा तू,

मैं नहीं तो धरती आग है,

एक क्षण में जल जाएगा तू...


मैं जल हूँ,

मैंने तुझे सबकुछ दिया है,

क्या मेरा क़र्ज़ चुकाएगा तू ?


मैं नहीं कहता की मुझे बचा लो तुम,

मेरे बिना ख़ुद को कैसे बचायेगा तू ?

क्या अपना जीवन बचायेगा तू ?

क्या ख़ुद को बचायेगा तू...??


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