मैं एक का बटुआ हूँ !
मैं एक का बटुआ हूँ !
पत्नी की तस्वीर के महक,
बच्चों के चिल्लर की छलक।
कुछ जिम्मेदारियों की खनक,
या नोटों की गड्डी की सनक।
कभी मंदी, कभी खुदा का रहनुमा हूँ
मैं एक का बटुआ हूँ !
समाज में मिले सम्मान,
जिंदगी के पूरे होते अरमान।
सिर्फ एक जरूरत का सामान,
या बनता फिजूलखर्ची की खान।
कभी तंगी, कभी खुशियों की दुआ हूँ
मैं एक का बटुआ हूँ !
माँ की आशाओं की कमाई,
बहन की राखी में बंधी कलाई।
प्रेमिका की प्यार भरी कोई चिट्ठी,
या अपने गांव की दो बूंद मिट्टी।
कभी भारी, कभी खाली कुंआ हूँ
मैं एक का बटुआ हूँ !
