मैं दासी गिरधर की
मैं दासी गिरधर की
ना,ये न कहना, मैं प्रीत हूँ तेरी
मैं तो दासी गिरधर की हूँ।
प्रेम रंग जो तुम पर है चढ़ आया,
तो मैं भी रंग श्याम से रंगी हूँ।
जिन्हें राधा ने चाहा, मीरा ने पाया,
उन्हीं में हृदय है मेरा समाया।
ये दासी क्या दे सकती प्यारे,
तू ठाकुर चरण में शीश झुका।
मेरा हाथ फिर क्यूँ है थामे,
जब गोविंदा हैं बाहें फैला।
ना,ये न कहना, मैं प्रीत हूँ तेरी
मैं तो दासी गिरधर की हूँ।
वक़्त ना कर बर्बाद तू प्यारे,
मैं तो बस गोविंद की हूँ ।
एक बार तो उनको पाले,
वही मीत, वही हैं सहारे।
मैं जोगन हूँ मीरा सी,
और जोगी मेरे कृष्ण हैं।
प्रियतम वही,वही हैं बैरी,
रिश्ते सब जोड़े उन्हीं से हैं।
ना,ये न कहना, मैं प्रीत हूँ तेरी
मैं तो दासी गिरधर की हूँ।
मैं प्रेम दीवानी, सुध-बुध हारी,
एक दरस की प्यासी हूँ।

