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Dr.Padmini Kumar

Abstract

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Dr.Padmini Kumar

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मैं चाहती हूँ

मैं चाहती हूँ

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छूना चाहती हूं हे आकाश तुम्हे

छिपा न जा अंतरिक्ष के पीछेे।

छूना चाहती हूं हे सूरज तुम्हें

छिपा न जा बादलों के पीछे।

छूना चाहती हूं हे रोशनी तुम्हें

छिपा न जा अंधेरे के पीछे।

छूना चाहती हूं चंदामा तुम्हें

छिपा न जा ग्रहणों के पीछे।

छूना न चाहती हे तारे सब

माला बनें गले में डालूं मैं।


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