मैं बस यूँ ही एक सदा हूँ
मैं बस यूँ ही एक सदा हूँ
बार-बार तुम्हारे इसी सवाल पर फिदा हूँ
तुम कौन हो? मैं बस! यूँ ही एक सदा हूँ
कुछ फासला रहने दे दरमियान अपने जानम
रम्ज़ हूँ तेरी हर शाम की महकी फिज़ा हूँ
बदलते मौसमों का मिज़ाज समझते नहीं तुम
उन यादों में किसी का ख़्याल मैं वो सजा हूँ
कोशिशों में वो कशिश -ए - जमीन दिखती नहीं
तीर ए क़जा को जो सुकून दे मैं वो मज़ा हूँ
वो बुत जो न बख्शें प्यार वो खुदा हूँ
लिखती हूँ मिटाती हूँ ऐसी एक अदा हूँ
तेरे आब ए चश्म में वह तपिश कहाँ
ये आसमां मैं तेरे हर ख़्वाब से जुदा हूँ
वो पयाम इन नुमाइशे नज़रों में न ला
मैं एक आग हूँ हर जिस्म से खफा हूँ
बड़ी वफा से जाहिर की तुमने काईदा ए कौम
छोटी सी ख्वाहिश ही सही पर मैं एक खता हूं।

