पावस ऋतु
पावस ऋतु
पावस की पावन ऋतु आई
बरसे घन मन हर्षित होई
चम चम चमक रही है बिजुरी
उर में घन के देखो! री सखी!
सघन हो गए हैं देखो ये वन
हर्षित बहता इन में जीवन
फूट रही है नव दिन नई कोपलें
उर से धरा के देखो! री सखी!
गड़गड़ गड़गड़ गरज रहे हैं
नभ में बादल तड़क रहे हैं
नाद हृदय में यहां है गूंजे
उर से प्रिय के देखो! री सखी!
रिमझिम रिमझिम बूंदे बरसे
प्यासी धरती अब क्यों तरसे
नदी, नाले, ताल, झरने है झरते
उर से नभ के देखो! री सखी!
सूर्य किरणों ने धनुष बनाया
सतरंगी इंद्रधनुष गगन में छाया
नव सौंदर्य सृजन आलोकित
उर में आकाश के देखो! री सखी!
