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EDUCATOR RAJEEV

Inspirational

4.8  

EDUCATOR RAJEEV

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मैं औरत हूँ

मैं औरत हूँ

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मैंने पूछा,

कौन हो तुम?

इस कोलाहल में

कितनी मौन हो तुम,

कहीं तुम वो तो नहीं,

जिसने एक चक्रवर्ती सम्राट के रथ में

धूरी बनाया था,

अपनी अंगुलियों का।

या तुम, वो हो,

जिसने अपने हाव-भाव मात्र से,

क्षेत्रियों के रक्तचाप बढ़ा दिये द्वापर मे,

नहीं उसके तो पंच मस्तक साथ थे,

तुम अकेली,

न कोई सखा न कोई सहेली।

संभवतः तुम वो हो,

जिसने ,

मर्दन किया था फिरंगियो का, और

"मर्दानी" का विशेषण पाया था

राष्ट्र को स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाया था।

पर तुम तो ,

कमजोर खड़ी हो,

कितनी लाचार पड़ी हो।

क्या तुम वो हो?

जिसने अपनी दया और सेवा से,

दुनिया को शांति और करुणा का

तोहफा दिया या था, और

लोगों ने उसे "मदर" कहा था।

तब उसने अपना मौन तोड़ा और कहा,

ना मै अनुसुइया हूँ,

जिसने

यमराज से भी अपने पति के प्राण

छीन लिये थे,

न मैं हेलेन केलर हूं,

जिसने अंधकार मे

अपनी सेवा भाव का अलख जताया था।

तुम मुझे रामराज की एक स्त्री समझो,

जिसे कल भी देनी थी अग्निपरीक्षा,

और आज भी देती है।

कभी बेटी बनकर, कभी बहू बनकर,

कभी बनकर माँ, अथवा किसी की स्त्री,

उन्हीं परीक्षाओं से हुई मैं घायल हूँ,

मैं नारी हूँ, किसी की आंखों से धुला हुआ काजल हूँ।

मेरी सहायता करो,

बताओ लोगों को,

कि सूखे पत्तों को प्रेम से भिगो के तर कर के देती हूँ,

मैं औरत हूँ, मकान दो मुझे, मैं घर कर के देती हूँ।


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