मासूमियत बचपन की
मासूमियत बचपन की
काश लौट आये वो बचपन की मासूमियत फिर से
शरारतों में छिपी वो रूहानियत फिर से
वो कागज़ की कश्तियों में तैरती हुई ख्वाहिशें
क्यों नहीं लौटती वो बारिशें
वो मम्मी के टिफ़िन में पराठे और आचार
मिल बांट खाते लंच ब्रेक में सब यार
वो केमिस्ट्री की मैडम का डंडे चलाना
वो हिस्ट्री के सर का मुर्गा बनाना
वो हिंदी के काव्य और साहित्यों से भरे लेक्चर
लगता था जैसे चल रही हो एक पिक्चर
सायकलों पे चलते हुए काफ़िले
अब न जाने वो समय मिले न मिले
वो लाइट जाने पर कॉलोनी में इकट्ठा हो जाना
कभी होता खेल लुक्का छुपी का
तो कभी अंताक्षरी में संग गाने गाना
जब होते थे सड़क पर क्रिकेट के मैच
वहाँ उत्साह के दिन न जाने गुम हो गए कहाँ
न जाने कब हम हो गए बड़े हो गए अपने पैरों पर खड़े
पर याद आते है वो बचपन के प्यारे दिन
याद आती है वो शरारतें
जीते हैं हम अब उनके बिन
काश लौट आये वो बचपन की मासूमियत
फिर से शरारतों में छिपी वो रूहानियत फिर से।
