मासूम जान
मासूम जान
मासूम जान ही तो थे
जो लड़ रहे थे सारे जहां से
ना तलवार थी ना ही ढाल
सितमगरों की सह कर मार
वो अपनी जिद पर अड़े थे
सत्याग्रह करना हो
चाहे करना हो दांडी मार्च
वो अपने निश्चय पर अडिग थे
अनशन कर कइयों बार
झुका दिया अंग्रेजों का वार
करा देश को तब आजाद
उस नन्हे मासूम जान को प्रणाम।