मासूम दिल का एहसास
मासूम दिल का एहसास
उन दिनों कुछ ऐसा था तापमान
मानो सूरज भी गर्म पानी में कर रहा हो स्नान
कोयल बंद कर चुकी थी कूकना अपना गीत
दहक रही थी हर एक इमारत की ईंट।
परीक्षाएं थीं उन दिनों मेरे सर पर
पसीनों से लथपथ था हर एक नर
बटोर रहा था जब मैं ज्ञान
तभी एक गमले पर गया मेरा ध्यान।
ध्यान कर लिया था उसने मेरा एकदम से चोरी,
दिख गई थी मुझको एक चंचल सी गिलहरी !
अनजानी ही धुन मे मगन थी वो,
मस्तिष्क कह रहा था 'पढ़ाई पर ध्यान दो !'
हटा नहीं पा रहा था उस पर से अपनी दृष्टि
अटखेलियांँ उसकी दे रही थी एक अजीब सी संतुष्टि।
फर्क नहीं पड़ रहा था उसे धूप या गर्मी से
मानो सूरज ने कर रखा था उसे बरी अपने नियमों से
इधर उधर बार-बार रही थी वह फुदक
पुलकित करती थी उसकी हर एक झलक
अचानक से थम गए उस गिलहरी के कदम
जैसे रुक गई हो उसकी दिल की धड़कन
जब पता चला कारण तो मैं भी ना झपका पा रहा था अपने अक्षि
आ गई थी मेरे बाग में एक अत्यंत खूबसूरत तितली
लग रहा था कि गिलहरी करना चाह रही थी
उस तितली से अपनी आँखें चार
मानो उस तितली से हो गया था उसे सच्चा प्यार !
याद आने लगा था मुझे भी अपना अतीत,
दिखा था जब पहली बार मुझे मेरा प्रीत।
मैं भी बिल्कुल उस गिलहरी की तरह था चंचल,
एक दिन आई वो लड़की जिसे देख के
हो गया था दिल में मेरे दंगल
एक अजीब सी धुन हो गई थी मेरे सिर पर सवार
जब पहली बार हुआ था मुझे प्यार ।
थी वो लड़की बिल्कुल इस तितली सी
मनोहर, खूबसूरत, दिलकश और नाज़ुक सी
पर समझ नहीं पाता हर जीव वो एक बात
जो अब रहेगी पूरी जिंदगी मुझे याद...
तभी एकदम हुई थोड़ी सी हलचल
छोड़ दिया था एकदम से उस गिलहरी ने अपना स्थल
भाग चली थी वो उस तितली के पास
पर तितलियों की फितरत का उसे नहीं था आभास।
वही हुआ उस गिलहरी के साथ भी
जो मेरे ऊपर कभी बीती थी।
चाहा उस तितली को पाना, पर हाय !
देखो तो सब, वह तितली उड़ी चली जाए।