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Pradeep Verma

Abstract

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Pradeep Verma

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मानवता

मानवता

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इंसान कैद है कमरों में, हर ओर पसरा सन्नाटा है।

कोई मौज कर रहा कहीं ना खाने को भी आटा है


अब सारे पक्षी खुशी से चारों ओर मंडरा रहे।

लगता है प्रकृति पर अपना अधिकार बता रहे।


क्या यह सत्य नहीं हमने धरती पर

अपना हक जताया है ?


 हम ही सबसे श्रेष्ठ है सारी प्रजातियों को बताया है।

 परंतु अब एक वायरस ने हमारा भ्रम तोड़ दिया


 घरों में कैद करवाकर विचारों का रुख मोड़ दिया

 यह लाकडा‌उ‌न तो कुछ दिनों का मेहमान है।


 प्रकृति को ना छेड़ अगर अकल है तू इंसान है।


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