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मानव स्वभाव

मानव स्वभाव

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ओ वैज्ञानिक किस बात का है तुझको अभिमान?

एक लक्ष्य अति दुष्कर दुर्लभ कठिन अति संधान।

जैसा है व्यवहार मनुज का, क्या वैसा है भाव?

कैसा है मन मस्तिष्क इसका, कैसा है स्वभाव?


अधरों पे मुस्कान प्रक्षेपित जब दिल में व्याघात,

अतिप्रेम करे परिलक्षित जब करना हो आघात।

चुपचाप सा बैठा नर जब दिखता है गुमनाम,

सीने में किंचित मचल रहे होते भीषण तूफान।


सत्य भाष पे जब भी मानव देता अतुलित जोर,

समझो मिथ्या हुई है हावी और सत्य कमजोर।

स्वयं में है आभाव और करे औरों का उपहास,

अंतरमन में कंपन व्यापित , बहिर्दर्शित विश्वास।


और मानव के अकड़ की जो करनी हो पहचान,

कर दो स्थापित उसके कर में कोई शक्ति महान।

संशय में जब प्राण मनुज के, भयाकान्त अतिशय,

छद्म संबल साहस का तब नर देता परिचय।


करो वैज्ञानिक तुम अन्वेषित ऐसा कोई ज्ञान,

मनुज-स्वभाव की हो पाए सुनिश्चित पहचान ।

तबतक ज्ञान अधुरा तेरा और मिथ्या अभिमान ,

पूर्ण नहीं जबतक कर पाते मानव अनुसंधान







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