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Sujata Kale

Abstract

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Sujata Kale

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माँ

माँ

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वृक्ष की लेखनी बनाऊँ,

और आकाश का कागज,

समुद्र की स्याही बनाऊँ,

और मन का अधिरथ,

फिरू भी माँ...

तुम्हारी महिमा

मैं लिख न पाऊँ...।


मेरु सा मथ दूं मैं मन को,

कल्पवृक्ष और धेनु मैं पाऊँ

कृष्ण से बाँसुरी मंगवाऊँ,

फिर भी माँ,

तुम सा मैं,

आँचल ना पाऊँ....।


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