माँ
माँ
वृक्ष की लेखनी बनाऊँ,
और आकाश का कागज,
समुद्र की स्याही बनाऊँ,
और मन का अधिरथ,
फिरू भी माँ...
तुम्हारी महिमा
मैं लिख न पाऊँ...।
मेरु सा मथ दूं मैं मन को,
कल्पवृक्ष और धेनु मैं पाऊँ
कृष्ण से बाँसुरी मंगवाऊँ,
फिर भी माँ,
तुम सा मैं,
आँचल ना पाऊँ....।