"माँ"
"माँ"
माँ वो फरिश्ता होती है
जो दुखों के धूप में
सुखों की छांव होती है,
माँ वो फरिश्ता होती हैं
जो अज्ञान के अंधकार में
ज्ञान का दीपक होती है
माँ वो फरिश्ता होती है
जो खुद पीड़ा सहकर
संतान को नवजीवन देती है
माँ वो फरिश्ता होती है
जो बच्चों की गलतियों पर
हर पल सागर होती हैं
माँ वो फरिश्ता होती हैं
जो दुआओं में बच्चों की
खुशियां चाहती हैं
माँ वो फरिश्ता होती है
जो चोट बच्चों से भी खाकर
तुम्हें चोट तो नहीं आई कहकर
प्रेम से गले लगाती है।
