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Preeti Sharma "ASEEM"

Abstract

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Preeti Sharma "ASEEM"

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मां ने ऐसे

मां ने ऐसे

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मां ने ऐसेे - बेटी को पाला था।


खुद की सुध-बुध विसरा के,

निज सपनों को तिलांजलि दे।


अपनी बेटी की आँखों में,

सतरंगी सपने धरती थी।


परिवार को जोड़े एक सूत्र में,

लेकिन मुंह से उफ्फ न करती थी।


ममता की छाया में रखकर,

बेटी को जिंदगी की, कड़ी धूप में पाला था।


मां ने ऐसे - बेटी को पाला था।


उसके कामों की चक्की तो,

दिन -रात निरंतर चलती थी।


कितनी बंदिशें.,कितने निर्देश...

वो कहती नही थकती थी।


बेटी होना इतना बुरा है।

तब वो सोचा करती थी।


समाज -परिवार का डर ,दिखा कर रोक दिया।

जोर से हंसी या ऊंचा बोली तो टोक दिया।


वो पंख खोल के,कैसे उड़ती।

मां ने कायदों,कायदा खोल दिया।


अपने घर जा के करना "सब,"

वो हर बात पर कहती थी।


कैसे झूठे सपने दिखा,

किस भ्रम में बेटी को पाला था।


तुम तो हो पराया धन ,

यह कह- कह बेटी को पाला था।


अपनी बातों को,अपने सपनों को,

दिल में सहेज के चली गई।


जैसे मां थी, बेटी भी।

खुद को मार के खामोश रही।।

      

        *****

फिर बेटी न खामोश रही। 

बेटी को पहचान देते हुए।


आत्मविश्वास के पथ पर आगे

बढ़ी।

बेटी के अधिकार के लिए,

वो कुप्रथाओं से आन लड़ी।।


उसके सपनों को रोका नहीं।

शिक्षा के लिए टोका नही।


बेटी कोई अभिशाप नही।

यह बोझ नही।

यह कंलक नही।


बेटी की शक्ति को पहचाना।

जीवनदायिनी बता उसको,

फिर मां ने ऐसे पाला था।।


उसके सपनों को उड़ान दे कर।

क्षितिज पर नाम बेटी का चमकाया था।


कितने अवरोधों से लड़,बेटी को विस्तार दें।

मां ने पूर्ण मामत्व निभाया था।


फिर ऐसे बेटी-बेटी को पाला था।

फिर ऐसे बेटी-बेटी को पाला था। 



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