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Sandeep Murarka

Inspirational Others

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Sandeep Murarka

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लवकुश

लवकुश

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सजा अयोध्या नगरी का भव्य राजदरबार,

बैठी तीनों मातायें, गुरुजन, राजा जनक,

मित्र सुग्रीव, भ्राता लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न 

भक्त हनुमान और जनता हजारों हजार।


श्वेत चँवर, स्वर्ण सिंहासन, देदिप्यमान

कुकुत्स्थकूल भूषण, दशरथ नन्दन,

रघुकूल तिलक, वीर धनुर्धारी ऐश्वर्यवान 

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम विराजमान।


मुनी कुमारों का वेष, हाथों में वीणा,

जिह्वा पे बैठी मानो माँ शारदे स्वयं,

कोयल से मीठे स्वर में गाते बालक,

महर्षि वाल्मीकि का रचा महाकाव्य।


राम का दरबार, राम की गाथा,

सबकी आँखें नम, चेहरा मौन है,

कौंध रहा सवाल सबके ह्रदय में,

आखिर ये दोनों गायक कौन है ?


जानकी जनक नंदिनी, दशरथ पुत्रवधू ,

भगवती सीता की कथा जब सुनाई,

पतिव्रता सती साध्वी की भूल क्या थी,

राम की सभा भी तय नहीं कर पायी।


सुन सभा में सारे लोग जड़ हो गये,

रुंध गये गले, बहने लगी अश्रुधारा,

शिष्य वाल्मीकि के, माँ है जानकी 

पिता श्रीराम, लवकुश नाम हमारा।


गुरुजनों के हाथ आशिष देने लगे,

दादी कौशल्या के होंठ फ़ड़कने लगे,

चाचा हुये सारे ह्रदय से बहुत प्रसन्न,

हनुमान ने किया मन ही मन वंदन।


छोड़ सिंहासन, राजा राम खड़े हुये,

सब पिता राम की ओर देखने लगे,

कि सोचा सभी ने, अब दौड़ेगें प्रभु, 

और अपने पुत्रों को गले से लगायेंगे।


राम तो राजा ठहरे,पहले राजधर्म निभायेंगे,

कड़कने लगी बिजली, फट गया आसमान,

जब माँगा श्रीरामचंद्र ने पुत्र होने का प्रमाण ?

लवकुश की गाथा सिखाती जीवन नहीं आसान ॥



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