लत
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लत
जीवन है परिपूर्ण लतों से किस -किस को छुड़ा पाओगे ?
जो चले छुड़ाने किसी एक को, घर सौतन उठा लाओगे।
मानो मेरा कहना तुम ओ प्रिये , न हो इक लत तो...
जीवन कैसे बसर कर पाओगे ?
जीवन चक्र है भँवर लतों का, प्रेम-ईर्ष्या बिंदु जिसके ,
माँ के आँचल से निकले तो पित्र छाँव में ही पुलकित हो पाओगे।
कभी लड़े जो भाई बंधु से, कहो प्रिये क्या उन्हें भी छोड़ आओगे ?
जीवन है परिपूर्ण लतों से किस -किस को छुड़ा पाओगे ?
करूँ बात इक बड़ी सयानी, जो समझो तो हो विद्वानी ,
क्या नहीं थी लत वो माशूक की, याद में जिसकी पिया शराब समझ के पानी ?
कहो प्रिये क्या सिगरेट के धुंए में उसको भी उड़ा पाओगे ?
हो गए कामयाब तो भी सिगरेट की लत तो घर ले ही आओगे...
जीवन है परिपूर्ण लतों से किस -किस को छुड़ा पाओगे ?
पकड़ी इक अच्छी लत तो सफल अवश्य हो जाओगे ,
कहे द्विवेदी विद्या सो लत , भवसागर तर जाओगे।
जीवन है परिपूर्ण लतों से किस -किस को छुड़ा पाओगे ?