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SOURABH DWIVEDI

Drama

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SOURABH DWIVEDI

Drama

लत

लत

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लत


जीवन है परिपूर्ण लतों से किस -किस को छुड़ा पाओगे ?

जो चले छुड़ाने किसी एक को, घर सौतन उठा लाओगे।

मानो मेरा कहना तुम ओ प्रिये , न हो इक लत तो...

जीवन कैसे बसर कर पाओगे ?


जीवन चक्र है भँवर लतों का, प्रेम-ईर्ष्या बिंदु जिसके ,

माँ के आँचल से निकले तो पित्र छाँव में ही पुलकित हो पाओगे।

कभी लड़े जो भाई बंधु से, कहो प्रिये क्या उन्हें भी छोड़ आओगे ?


जीवन है परिपूर्ण लतों से किस -किस को छुड़ा पाओगे ?


करूँ बात इक बड़ी सयानी, जो समझो तो हो विद्वानी ,

क्या नहीं थी लत वो माशूक की, याद में जिसकी पिया शराब समझ के पानी ?

कहो प्रिये क्या सिगरेट के धुंए में उसको भी उड़ा पाओगे ?

हो गए कामयाब तो भी सिगरेट की लत तो घर ले ही आओगे...


जीवन है परिपूर्ण लतों से किस -किस को छुड़ा पाओगे ?


पकड़ी इक अच्छी लत तो सफल अवश्य हो जाओगे ,

कहे द्विवेदी विद्या सो लत , भवसागर तर जाओगे।


जीवन है परिपूर्ण लतों से किस -किस को छुड़ा पाओगे ?


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