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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Abstract Inspirational

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Abstract Inspirational

लोकतंत्र में अवैध विख्याता है

लोकतंत्र में अवैध विख्याता है

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तटस्थ हूं ऐसा नहीं कि नि:संग हूं,

मर्मज्ञ हूं और मतानुयायी गांगेय हूं,

तर्काभासी है क्या ठीक तानाशाही,

मितभाषी है या ठीक अतिशयोक्तिशासी है,

अविवेक से समाज अनलदग्धरुढ़ है,

जठराग्नि से आवाज किंकर्तव्यविमूढ़ है।

लोकतंत्र में अवैध व्याख्याता है,

शोकतंत्र में अदेय अनवरत शाखा है।


दुराग्रह अवसरवादी सच्चरित्र हुआ है,

रूपसी आशातीत भावी का अधिकृत हुआ है,

निरामिष प्रहरी हूं अनुदार नहीं,

सर्वज्ञ प्रतिनिधि हूं भ्रष्टाचार नहीं।

रक्तरंजित घसियार हुये घूसखोर,

माननीय अपव्ययी हुये सब चोर।



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