लोकतंत्र का दमन
लोकतंत्र का दमन
हाशिये पर पड़े लोकतंत्र को यारों ज़रा पकड़ लो
हिम्मत करो इस बार तो हुक़ूमत की गर्दन जकड़ लो
अब बिक रही वतन परस्ती बुनियादी मुद्दों के दौर में
समझो इस सियासत के व्यापार को और व्यापारी पकड़ लो
ज़मुरियत् है अब बोलती चंद शोहदों की ज़ुबान से
इन मज़हबी खेलों के सब किरदार पकड़ लो
क्यों चूसते हैं सियासत के चौकीदार लहू बेगुनाहों का
है माद्दा अगर तो मुल्क के सब गद्दार पकड़ लो
कोशिश है अगर वतन की सूरत-ए-हाल बदलना
छोड़ो कलम, अब तुम भी इंकलाब की तलवार पकड़ लो
