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जो पौधे लगाते आम के तो आज कीकर नहीं होता। जो पौधे लगाते आम के तो आज कीकर नहीं होता।
क्यों चूसते हैं सियासत के चौकीदार लहू बेगुनाहों का है माद्दा अगर तो मुल्क के सब गद्दार क्यों चूसते हैं सियासत के चौकीदार लहू बेगुनाहों का है माद्दा अगर तो मुल्क के ...
बिछड़ते दरख़्त से परिंदों की तरह माँ के न होने से हम भी डरते रहे बिछड़ते दरख़्त से परिंदों की तरह माँ के न होने से हम भी डरते रहे
इश्क़ था तो वफ़ा की दरकार भी थी मैं गुनाह सा रहा और वो सज़ा हो गई इश्क़ था तो वफ़ा की दरकार भी थी मैं गुनाह सा रहा और वो सज़ा हो गई