शब्दांजली
शब्दांजली
महज़ उनके होने भर से हमें कुछ डर नहीं होता
माँ न हो तो सिर्फ़ पत्थरों से कोई मकान घर नहीं होता
हैं मजबूरियाँ जिस वज़ह से दूर हैं सब घर से
कोई अपनी ख़ुशी से तो कभी बेघर नहीं होता
रखते हैं अलग सलीका हम काम करने का
जो तुमने बेहतर किया होता तो आज बदतर नहीं होता
बड़ी मुश्किलें हैं यारों मुफ़्लिशों की ज़िंदगी में
कम्बख़्त नींद आती वहीं है जहाँ बिस्तर नहीं होता
ना जाने किस केहकहे में तुने सब राज़ खोल दिए
और हमारी ज़ुबाँ से तेरा नाम तक बाहर नहीं होता
देख कर किसी को तुम अच्छा समझना मत
चमकते जुगनुओं में सितारों सा गौहर नहीं होता
यहाँ पत्थर के पुतले हैं, मकां हैं और इन्सां हैं
बस हर सख्श का दिल कभी पत्थर नहीं होता
बस यही इक बात समझे हैं बचपन से जवानी तक
इस जहाँ में ज़िन्दगी जैसा कोई दफ़्तर नहीं होता
हर कुछ हमारा ही किया है, नहीं कार-ए-जहाँ कुछ भी
जो पौधे लगाते आम के तो आज कीकर नहीं होता।