लकीरें ज़िन्दगी की
लकीरें ज़िन्दगी की
टेडी मेडी लकीरों से लेकर सीधी
लकीर तक का सफ़र ज़िन्दगी हैं
कितनी सीढ़ियां गवाह बनती रही
सीढ़ी लकीर तक जो जाना हैं
कितनी विकल्प परिस्थितियां बदलती रही
बदलवाती रही सीढ़ी लकीर तक जो जाना हैं
कितना असर पड़ता था कितनी कसर छोड़ता
रहा सीधी लकीर तक जो जाना हैं
कितना अच्छा रहा कितना बुरा रहा हर पल
याद करता सीधी लकीर तक जो जाना हैं
कितनी शिकायत रही कितने गिले शिकवे किसी भी
अवस्था में जीने की चाह में डिब्बे में बंद रही
ज़िन्दगी को आकाश में जो उड़ना है सीढ़ी लकीर तक जाना है
कितने तजुर्बे लिए कितने तजुर्बे बांटे ज़िंदा दिली से
जीने की तमन्ना लिए जीते रहे सीढ़ी लकीर तक जाना है
कोहरे सी ज़िन्दगी को हाथों से हटा कर कितना खोजा हैं
कितना बरामत हुआ सागर में सीप की तरह
कितना दिया जलाया मंदिर में दीप की तरह
कितनी फरियाद करी दरगाह में पीर की तरह
कितनी सर झुकाए झोली फैलाई फरियादी की तरह
कितना किया कितना सहा
कितना लिया कितना दिया
कितना सिया कितना पिया
कितना कमाया कितना गवाया
जितना किया जितना जीया
कितना सफ़र तय करना होगा
सीधी लकीर की सीढ़ी तक पहुंचना हैं
कितना भी गहरा प्रभाव हो जीवन मंत्र यहीं
शून्य से शिखर तक होकर भी रूह निकलने तक
शून्य ही हो जाना है सीढ़ी लकीर का एहसास सीढ़ी खींच लेती हैं।
आत्मा परमात्मा तक का सफ़र आख़िरी में
मैं का अहम योगदान रहता हैं
क्या लेकर आए थे क़िस्मत क्या लेकर जाएंगे अपने कर्म
बस यही ज़िन्दगी हैं।