लहर
लहर
हुक्मरान कहते है एक लहर आयी थी आकर चली गयी
पर जाने कितने आशियाँ बहकर चली गयी
छीन कर ले गयी कितनो के पैरों तले की ज़मीन
कितनों के सर की छाँव गिरा कर चली गयी
हुक्मरान कहते है..........
कुछ आँगन गीले हुए कुछ में गाद जमी
बदनसीब ठहरे वो आँगन जिनमें पसरी गमी
जीत ली जंग उन्होंने जिनपर करम था खुदा का
जो हार गए उनपर कहर बरपा कर चली गयी
हुक्मरान कहते है..........
कोई घर में कैद हुआ और तरसा दाने को
कोई भटका दर दर जीने का सामान जुटाने को
कुछ ने खोयी रोज़ी रोटी, कुछ ने साँस न पाया
माया रुतबा धरा रह गया कुछ भी काम न आया
ज़िंदगी खरीदने को जाने क्या क्या बिकवा कर चली गयी
हुक्मरान कहते है..........
कुछ के बिके ज़मीर तो कुछ ने खैरातें बाटी
कुछ ने घर बचाए तो कुछ ने जेबें काटीं
कुछ बन गए शैतान अपना ईमान मार कर
तो कुछ खड़े हुए इंसानियत की ढ़ाल तान कर
कितनो की रूह का असली रंग दिखला कर चली गयी
हुक्मरान कहते है..........
माना कि गिरते आकड़ें उम्मीद बंधा रहे है
माना कि अस्पतालों अब लोग वापस घर आ रहें है
पर उन घरों का क्या जिनमे उसने मातम भर दिया
जिन घरों में उसने इंसाओं को तस्वीरक कर दिया
बसी हुई है वो उन तस्वीरों पीछे वो वहां से नहीं गयी
गलत कहते हो की एक लहर आयी थी आकर चली गयी
ठहर गयी है वो हम सब की ज़िंदगी में अब
कभी न कहना की वो लहर आकर आयी थी आकर चली गयी.
