Veer Malihabadi

Inspirational

3.6  

Veer Malihabadi

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लगी जो आग

लगी जो आग

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लगी जो आग इस ज़माने में वो बुझे कैसे, 

उठी दीवार ये जो दरमियाँ गिरे कैसे। 


दरारें पड़ रही बचपन की मुस्कुराहटों के बीच,

बढ़ रहीं दूरियाँ दिल की, ये अब घटे कैसे।


"वीर" तू सोचता है काश वो दिन फिर से आए,

रहें सब साथ मिल के फिर वही ख़ुशियाँ मनाए।


मगर मत भूल सब जकड़े हैं मज़हब की जंजीरों में,

इन्हें तोड़े वो जुर्रत तू बता अब कौन लाए।


कोई पंडित कोई काज़ी मुझे इतना बताए,

नफ़रत ए आग का ये खेल अब रुके कैसे।


लगी जो आग इस ज़माने में वो बुझे कैसे, 

उठी दीवार ये जो दरमियाँ गिरे कैसे।।


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