लड़के और बाप
लड़के और बाप
लड़के बाप को गले नहीं लगाते,
लड़के बाप के गालों को नहीं चूमते,
और न ही बाप की गोद में सर रख कर सुकून से सोते हैं,
बाप और बेटे का संबंध लिमिटेड होता है,
बाहर रहने वाले लड़के अक्सर जब
घर पर फोन करते हैं तो उनकी बात मां से होती है,
पीछे से कुछ दबे-दबे शब्दों में पापा भी कुछ कहते हैं,
सवाल करते हैं या सलाह तो देते ही हैं,
जब कुछ नहीं होता कहने को तो,
खांसने की हल्की सी आवाज उनकी
मौजूदगी दर्ज करवाने के लिए काफ़ी होती है,
बाप की नासाज़ होती तबियत का हाल भी लड़के मां से पूछते हैं
और दवाइयों की सलाह, परहेज इत्यादि
बात भी लड़के मां के द्वारा ही बाप तक पहुंचाते हैं,
जैसे बचपन में कहीं चोट लगने पर मां से लिपट कर रोते थे,
वैसे ही जवानी में लगी ठोकरों के कारण
अपने बाप से लिपट कर रोना चाहते हैं,
अपनी और अपने पिता की टेंशन आपस में
साझा करना चाहते हैं, परन्तु ऐसा कर नहीं पाते,
बाप और बेटा शुरुआत से ही एक दूरी में रहते हैं,
दूरी अदब की, लिहाज की, संस्कार की,
या फिर जनरेशन गैप की,
हर बेटे का मन करता है कि वो इन दूरियों को लांघता हुआ जाए
और अपने पिता को गले लगा ले..!
पिता के साथ फ्रेम में आने का हर लड़के का सपना होता है,
मगर लड़के यह कर नहीं पाते,
वो मां से जितना प्यार करते हैं बाप का उतना ही सम्मान,
अदब और लिहाज करते हैं,
और ये सम्मान और लिहाज की दीवारें इतनी बड़ी हो चुकी है कि
इनसे पार पाना लगभग नामुमकिन हो जाता है..