लौटना
लौटना
अपने आप मे लौटना
जैसे बरसों बाद
अपने गांव लौटना।
जहां अब भी
रिवायतें है दौड़ कर
करीब आने की
मुस्करा कर गले लगाने की
कैसे हो ?
कहा रहे इतने दिन?
पूछने की।
पोछने की
नम आंखें अपनी
कहते हुए
बहुत याद आती थी
तुम्हारी निर्मोही
अब तो न जाओगे
छोड़ कर।
हक से
पकड़ते हुए बांह
कहते हुए
छोड़ो अबकी
सताने ही नहीं देंगे
बेफिजूल की बहकाती
बातों को तुम्हे,
जाने ही नहीं देंगे
तुम्हे कहीं।
घुमाना
वो छोड़ा हुआ
अपना ही घर
दिखाना बताना सब
कहना देखो
सब का सब
ठहरा हुआ है
संजोया हुआ है
यकीन में
लौटने की तुम्हारे।
हौले से
बैठाना उसी जगह
जहां से उठे थे
कदम अनजानी राह को
कहना डपट कर यारों सा
अब के चले यहां से तो
दौड़ा लेंगे क्षितिज तक
छिपाते हुए
बीते समय का दर्द
भीगती हुई
हंसी में।
लगाना
काला टीका
मन के उपर
उतारते हुए नजर
लेते हुए बलैयां
कहते हुए
लौट आया मेरा भूला
सांझ से पहले।
अपने आप में लौटना
जैसे बरसों बाद
अपने गांव लौटना।