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Nujhat Parween

Tragedy

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Nujhat Parween

Tragedy

क्यो इतनी जल्दी बड़ी हो गई मैं बाबा,

क्यो इतनी जल्दी बड़ी हो गई मैं बाबा,

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क्यो इतनी जल्दी बड़ी हो गई मैं बाबा,

आपकी नन्ही सी कली

समाज की आंखों में कब बड़ी हो गई पता भी न चला,

क्यो बाबा समाज की ताने सुन कर खुदसे दूर किया मुझे

डोली में बैठा कर बिदा किया मुझे।

ठीक से चलना भी नही सीखा था मैंने, 

आंगन में खेलने की उमर में क्यो सौंप दिया मुझे पराए की हाथो।

आज भी मेरा आंगन पुकार रहा मुझे, 

मुड़ कर न देख सकती मैं,

समाज उंगलियां उठाएगी मुझपे

मायके आते ही रिश्तेदारों की एक ही सवाल सताती है,

बेटी कब जाएगी अपनी घर 

आखिर क्यों बेटियां अपने घर में मेहमान कहलाती है।

दुनिया की रीत भी कैसी है ना,

अपनी घर में बेटियां पराई धन कहलाती है।

पराई घर में, 

पराई घर से आई है कह कर याद दिलाया जाता है। 

क्या सच में बेटियों का कोई घर नही होता है मां 

समाज वालो से मेरा नही सब बेटियों का सवाल है, 

क्यो बेटियों के साथ ऐसा हाल है। 

सवालों की कश्मोकश में फस सी गई हूं, 

जैसे समंदर की गहराई में डूब सी गई हूं।।


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