कविता कैसे लिखूं ?
कविता कैसे लिखूं ?
सोच रही हूं मैं भी कवयित्री बन जाऊं,
और सुन्दर सुन्दर रचनाएँ लिख सबको सुनाऊँ।
पर जब बैठी कलम लेकर लिखने को,
तो क्या लिखूँ, तंग आ गयी यह सोच सोच कर।
सोचा था कविता लिखना होता हैं आसान,
पर कविता की शुरूआत से ही हो गई परेशान ।
सोचा था कबीर, सूर, तुलसी की तरह
सुन्दर रचनाएँ बनाऊंगी,
मैं भी काव्य जगत में कुछ नाम कमाऊंगी।
सूर ने कृष्ण, तुलसी ने राम, कबीर ने किया
निर्गुण ब्रह्मा का वर्णन,
मैं भी कुछ अच्छी कृतियाँ कर
दिखाऊँगी समाज को दर्पण।
तुलसी के राम सा पात्र खोज न पाई,
सूर के कृष्ण सा सखा न दर्शायी।
कबीर के निर्गुण का भाव न बना पाई,
वे सब थे भक्त, ध्यानी निज युग - युग के,
मैं हूँ अज्ञानी, अरू निरूपायी,
कैसे लिखूं रचनाएँ, काव्य का ज्ञान नहीं।
छंद, रस, भाव, अनुभाव का ज्ञान नहीं,
बार - बार लिख- लिखकर उसे मिटाती हूँ
हाय क्या करूँ? एक रचना नहीं लिख पाती हूं,
सोच रही हूं एकलव्य बनकर दिखलाऊंगी।
शारदे मांं की मूर्ति मैं बनाऊंगी,
बैठकर लिखूंगी कविता उस मंदिर में,
कदाचित एक दिन मैं कवयित्री बन जाऊंगी।