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Soni Gupta

Abstract

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Soni Gupta

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कवि के मन की भाषा

कवि के मन की भाषा

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कवि के मन की भाषा

हृदय उसका जो कहता

लेखनी उसकी वैसे चलती

होता हर बंधन से दूर है


बदला जमाना हो गए गीत पुराने

कवि लिखता दिन -रात

अपने नए -नए तराने

कभी भूमिकाकभी प्रेमिका

कभी लिखता दुःख पुराने

कवि तो लिखता मन की भाषा।


फीके रस भी मीठे हो जाते

विष भी अमृत हो जाता

कवि की रचना बड़ी न्यारी

जीवन की कटुता भी हो जाती प्यारी

कवि तो लिखता मन की भाषा।


निराशा को भी आशा में बदलता

मस्ती में झूमता लिखता बातें

नई -पुरानी जानी-अनजानी

अपने मन की सुनकर

काव्य रचना करता सुंदर -सुंदर

कवि तो लिखता मन की भाषा।


बहकी दुनिया भटक गए हैं लोग

सहमी जिन्दगी लुटी सभ्यता

सबको समेटता लिखता जाता

लेखनी से अपनी जैसे जग रचता

बनाता दुनिया मन -मानी

कवि तो लिखता मन की भाषा।


आज दोस्ती की आड़ में अपनों ने

जग पर छुरी चलाई है

घमंड में आकर पूंजी बहुत लुटाई है

कवि ने अपनी लेखनी से

काव्य ज्योत जगाई है

कवि तो लिखता मन की भाषा।


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