कुर्सी प्रेम विराट
कुर्सी प्रेम विराट
कुर्सी प्रेम ऐसा
दिन में देर जरा
मिल जाए कुर्सी
भूल चूक नहीं
कुर्सी ही गायब
कुर्सी प्रेम विराट
पहली और आखरी
ग्रसित कुर्सी भाई
भतीजावाद व परिवारवाद
की वादों से
कुर्सी प्रेम ऐसा
दिन में देर जरा
मिल जाए कुर्सी
भूल चूक नहीं
कुर्सी ही गायब
कुर्सी फूल बरसाते
बन जाते सूली
नेता जी जाने
किस घनचकरी फसते
और उलझ जाते
कुर्सी प्रेम ऐसा
दिन में देर जरा
मिल जाए कुर्सी
भूल चूक नहीं
कुर्सी ही गायब
अधिकार न होती
दलालो की आजादी
चमचे जीते अपने ढंग
कुर्सी प्रेम ऐसा
दिन में देर जरा
मिल जाए कुर्सी
भूल चूक नहीं
कुर्सी ही गायब
ऐसा हुआ होता
खोता लोकतंत्र दुनिया
क्या होता अफसरों की
क्या होता दलालों की
क्या होता चमचों की
कुर्सी प्रेम ऐसा
दिन में देर जरा
मिल जाए कुर्सी
भूल चूक नहीं
कुर्सी ही गायब
इतनी नाज नखरे
विभिन्न दलदल पार्टी
इतना वैधव्य है सियासत
खो जाता ये सब
बस रह जाती
उदास नेतागर्दी मात्र
कुर्सी प्रेम ऐसा
दिन में देर जरा
मिल जाए कुर्सी
भूल चूक नहीं
कुर्सी ही गायब
झूठ जंजाल संकल्प पत्र
वचन पत्र की झुनझुने
बिन बुलाए आती
चुनावी बेला चालू
अवस्था चक्लम की
अति उत्तम है जो
कुर्सी प्रेम ऐसा
दिन में देर जरा
मिल जाए कुर्सी
भूल चूक नहीं
कुर्सी ही गायब
कुर्सी ने बाधाएं बहुत
सियासी दल जो करे
ना करने दिया जाए
मौलिक झूठ की अवसर
मिले अपने ढंग से
कुर्सी प्रेम ऐसा
दिन में देर जरा
मिल जाए कुर्सी
भूल चूक नहीं
कुर्सी ही गायब
डगमगाने की भावना
क्षण में कुर्सी का खतरा
वोटरों की मिन्नते गीत गाए
संकल्प व वादों का फहराना
शुरू हुआ नए ढंग
कुर्सी प्रेम ऐसा
दिन में देर जरा
मिल जाए कुर्सी
भूल चूक नहीं
कुर्सी ही गायब
हे प्रभु क्या दिखला रहा
अचेतन छुपी कामना
एक कुर्सी ही मांगी
असल समय कुर्सी ही काम
जीवन सार कुर्सी मात्र
कुर्सी प्रेम ऐसा
दिन में देर जरा
मिल जाए कुर्सी
भूल चूक नहीं
कुर्सी ही गायब
कुर्सी से काम लूं
अपने हिसाब
अहंकार अपेक्षा पूरी
व्यवहार करे अपने ढंग
शुद्ध आरोपण ही मात्र
कुर्सी प्रेम ऐसा
दिन में देर जरा
मिल जाए कुर्सी
भूल चूक नहीं
कुर्सी ही गायब
कुर्सी मर्जी ही अंतिम
भाव ही अजर अमर
क्षण भर संदेह कांप
ऐसी लहर चली
चुनावी समर समय
कुर्सी प्रेम ऐसा
दिन में देर जरा
मिल जाए कुर्सी
भूल चूक नहीं
कुर्सी ही गाय
दलदल पार्टी चिन्ह
टांगे कोट उपर
दारुण भरे स्वर
हे प्रभु क्या दिखला रहा
इस चुनावी घड़ी
गंदे गलीज वोटरों के आगे
कब तक नाक घिसू
कुर्सी प्रेम ऐसा
दिन में देर जरा
मिल जाए कुर्सी
भूल चूक नहीं
कुर्सी ही गायब
चुनावी समर मुद्दे बने
लगे नारे बरसाने
अच्छी तरह समझ आता
क्षण भर बाते बनाने
कुर्सी प्रेम ऐसा
दिन में देर जरा
मिल जाए कुर्सी
भूल चूक नहीं
कुर्सी ही गायब
वोटरों की ना समझी
लहर जो उठ
सदैव तैयार भुनाने
एक लहर संदेह की
लेते उसे पकड़
कुर्सी प्रेम ऐसा
दिन में देर जरा
मिल जाए कुर्सी
भूल चूक नहीं
कुर्सी ही गायब
अपनी भूल चूक मान
सिर झुकाते
वोटरों की पैर गिर
तत्क्षण धरती समाते
कुर्सी प्रेम ऐसा
दिन में देर जरा
मिल जाए कुर्सी
भूल चूक नहीं
कुर्सी ही गायब
चुनावी बेला नया सूरज
सामने रहा दमदमा
वोटर तेरी मर्जी
वही पूरी हो
क्या जानूं ठीक क्या?
हमारी मर्जी का मूल्य क्या
तू जानता क्या ठीक है
कुर्सी प्रेम ऐसा
दिन में देर जरा
मिल जाए कुर्सी
भूल चूक नहीं
कुर्सी ही गायब
तू जो करे वही ठीक
नमस्तक तेरे आगे
हे वोटर देव
पता है मुझको
तू अपना वोट
मुझको ही दोगे
कुर्सी प्रेम ऐसा
दिन में देर जरा
मिल जाए कुर्सी
भूल चूक नहीं
कुर्सी ही गायब।
निर्मुणी@संजीव कुमार मुर्मू