कुण्डलियां : सपना
कुण्डलियां : सपना
सपना खरीदने मैं गया , एक दिना बाजार ।
अंटी में धेला नहीं , और दे नहीं कोई उधार ।।
दे नहीं कोई उधार , मुसीबत तगड़ी आई ।
मेरी पड़ोसन "सपना" , इतने में वहां आई ।।
हाथ पकड़ ले चलने को , मैं जैसे हुआ तैयार ।
चप्पल की बरसात हुई, मुझ पे बीच बजार ।।
कहें "हरि" कविराय कि , सपना पड़ गया भारी ।
अखबारों में छपने की , हो गई पूरी तैयारी ।।
