कुछ देर तो ठहर।
कुछ देर तो ठहर।
चले जाना अभी कुछ देर तो ठहर
है देर अभी सहर आने में,
ऐ चंदा! कुछ पल तो अभी और ठहर,
चले जाना, जब आये रवि
नव प्रभात लेकर,
तू इस दिल में, हसीं जज़्बात भरकर।
भरे जज्बातों में,
दिन गुजार लेंगे,
कभी हंस कर,
और कभी रो-रोकर
दी हैं जो तूने यादें उनमें
खो कर।
तेरी करीबी के पल, ठहरते क्यूं नहीं,
दिन तो गुजर जाता है, उलझी सी
यादों में,
सिंदूरी शामें कटती नहीं, नैनों में उतरी
बरसात लेकर।
डर लगता है कहीं, इन बरसातों में
डूब न जाएं,
तेरे आने की खबर लाने वाली
हंसीं रातों की मुलाकातें भी,डूब-डूब कर,
तुझ से मिलने की हसीन सी दरकार लेकर।।
