कुछ बातें अनकही सी
कुछ बातें अनकही सी
बातें आज कल ख़ुद की ख़ुद से छुपाता हूं,
बार बार कुछ लिख कर पन्नोॱ से मिटाता हूं
क्या कहूं कैसे कहूं कुछ पता नहीं सब अच्छा है बस बढ़िया है यही बताता हूं।
मेरी शराफ़त ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा,
लगता है अल्फाज़ो ने मेरे लबों से है मुंह मोड़ा।
चैन से मैं सो नहीं सकता,मर्द हूं मैं तो रो भी नहीं सकता।
होता कोई हंसी की उदासी पढ़ने वाला,
सब का दर्द समझने वाले इस दिल को समझने वाला।
काश थोड़े शातिर हम भी हो जाते,
इस भीड़ में हम भी जान पाते , अपने लिए थोड़ा और सोच पाते।
जिंदगी मुझे कोई शिकायत नहीं अब तुझसे,
हां मगर ये यकीन हैं, यकिन मैं जीत जाऊंगा,
क्यों कि मेरी जंग है अब सिर्फ ख़ुद से।
