STORYMIRROR

Shivangi Dubey

Abstract

3  

Shivangi Dubey

Abstract

अरे ओ दोस्त

अरे ओ दोस्त

1 min
129

अरे ओ दोस्त......

तेरी इन खामोशियों को मैं ही तो समझ पाया..... 


जानता हूं तू भीड़ में खूब खिलकर मुस्कुराया

और तन्हाई में ढेरों आंसू बहाया.....


 तभी तो तुझ से चन्द लम्हे मिलने को

मैंने भी महीनों इंतजार में बिताया .....


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract