कठपुतली
कठपुतली
कठपुतली प्यारी सी
सबसे लगती न्यारी सी
क्यों
क्योंकि वो चलती है
दूसरों के इशारों पर
नाचती है सबकी
उंगलियों पर
वो अपनी आजादी खोकर
बनती है सबकी प्यारी
जिसका जैसा मन हुआ
उसको वैसे ही नचा लिया
लेकिन हम औरतों का
हाल भी यही होता है
हर कोई अपने इशारों
पर हमें नचाता है
फिर भी हमारे लिये
दिल किसी का नहीं रोता है
उनकी मर्जी से चले तो सही है
अपनी मर्ज़ी से चले तो नहीं है
हम अपनी आज़ादी खोकर भी
चैन से नहीं रह पाती है।
हमसे बेहतर ज़िन्दगी तो
कठपुतली ही जी जाती है।
