STORYMIRROR

Manu Sweta

Abstract

3  

Manu Sweta

Abstract

कठपुतली

कठपुतली

1 min
186

कठपुतली प्यारी सी

सबसे लगती न्यारी सी

क्यों

क्योंकि वो चलती है

दूसरों के इशारों पर

नाचती है सबकी

उंगलियों पर


वो अपनी आजादी खोकर

बनती है सबकी प्यारी

जिसका जैसा मन हुआ

उसको वैसे ही नचा लिया

लेकिन हम औरतों का

हाल भी यही होता है


हर कोई अपने इशारों

पर हमें नचाता है

फिर भी हमारे लिये

दिल किसी का नहीं रोता है


उनकी मर्जी से चले तो सही है

अपनी मर्ज़ी से चले तो नहीं है

हम अपनी आज़ादी खोकर भी

चैन से नहीं रह पाती है।


हमसे बेहतर ज़िन्दगी तो

कठपुतली ही जी जाती है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract