कर्तव्य
कर्तव्य
स्वप्न
आज इतिहास में जाकर
तुम्हारे समक्ष खड़ी मैं
वो सैनिक, हाथी, घोड़े
सब स्तब्ध हैं
मैं निहारती तुमको
तुम्हारे कमलनयन
मुख मंडल का तेज
उंगलियों में लिपटा चक्र
हे न्यायाधीश
पीछे छूट गया है
धूल का एक बवंडर
वायु से तेज दौड़ता रथ
बन गए तुम सारथी
तुम्हारे सखा के लिए
हे नंद प्रिय
तुम्हारी प्रेयसी
याद करती होगी तुमको
कर्तव्य को चुनकर
निकल आये हो
दूर
हे नाथ मेरे साथ चलिये
खड़ा करिये एक अर्जून
पाप के नाश के लिए
मिटाइये गलत को
इस धरा से
आज इतिहास में जाकर...
