आगाज़
आगाज़
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कागज़ में बिखरा, अल्फाज हूं क्या
मांगू जो तुझसे, मोहताज हूं क्या।।
जमीं पर चलूं, ठोकर न दूँ पत्थर को
मैं सिर्फ मैं हूं, कोई सरताज हूं क्या
निगाहें चुराने की वजह और भी हैं
शर्म हूं, हया हूं, तो दगाबाज़ हूं क्या
ख़ामोश है चले जाने से भला तू क्यूँ
मोहब्बत हूं तेरी, तेरी आवाज़ हूं क्या
जी रहा था मिलने से पहले भी मुझसे
तेरी शुरुआत हूं, तेरा आगाज़ हूं क्या
