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Manu Gayathri

Tragedy

4  

Manu Gayathri

Tragedy

कर्मफल

कर्मफल

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अच्छे कर्म से अपने मुँह मोड जाना,

ये भला कैसा धर्म है।

बुरे कर्म से अपने मुकर जाना,

ये भला कैसे उचित है।

यूँ कर्मफल से क्यों भाग जाना,

जब अच्छे -बुरे का इतना ही समझ है।

कर्मफल से क्या डर जाना,

जब कर्म चुनते वक्त न कोई भय है।

जब उचित है दूसरे स्त्री पर बुरी नज़र डाल जाना,

तो घर के औरतों की सुरक्षा पर क्यों चिन्ता है।

जब अधिकार है पत्नी पर रोब डाल जाना,

तो दामाद के गुणों पर क्यों तहकीकात है।

जब बुढ़े माँ-बाप को वृद्धाश्रम है छोड जाना,

तो खुद के बच्चों के प्यार पर क्यों सन्देह है।

जब बहु पर अत्याचार है कर जाना,

तो बेटी केलिए अच्छे ससुराल की क्यों खोज है।

जब दूसरों केलिए अहित है कर जाना,

तो खुद केलिए हित की क्यों कामना है।

हर कर्म पर फल की प्रतीक्षा कर जाना,

भगवान भी न बचे तो बचने की क्यों अपेक्षा है ।

   


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