कर्ज
कर्ज
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शहीद आँखें मुंदने से पहले था गौरवान्वित,
कि भारत माँ का कर्ज चुका दिया।
परंतु प्रश्न था मन मे ले चला,
कि भाइयों ने ही क्यों देश लुटा दिया।
क्यों नहीं सभी भारत माँ के लिए सोचते,
धर्म जाति राज्य के नाम क्यों बाँट दिया।
क्यों कोई बहन नहीं है सुरक्षित,
वृद्ध माँ बाप से क्यों मुख मोड़ लिया।
पैसों की लालच मे भाई ने ही
भाई की पीठ मे खंजर क्यों घोंप दिया।
क्यों बेटी का जन्म नहीं है उत्सव,
गर्भ मे ही उसका गला घोंट दिया।
क्यों देश सर्वोपरि नहीं मन में,
मातृभूमि के प्रति मोह तोड़ दिया।
अमित कहे
क्यों न हो जाएँ संगठित सभी,
तिरंगे का मिल मान बढ़ाएं,
लगे अपना भी कर्ज चुका लिया।