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Ram Chandar Azad

Inspirational

4  

Ram Chandar Azad

Inspirational

क्रांति की ज़रूरत

क्रांति की ज़रूरत

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एक क्रांति तो पहले हुई थी गोरों

को मार भागने की

एक क्रांति की आज जरुरत

जन गण मन को जगाने की


चले गए अँग्रेज मगर अंग्रेजीपन

को छोड़ गए शासन प्रशासन

में अपने पुतले वंशज छोड़ गए

वैसी भाषा वैसी बानी खानपान

भी वैसा है

लूटपाट का वही तरीका अकड़

फिरंगी जैसा है

इनको कोई कुछ कह दे तो 

आदत इनकी गुर्राने की   

एक क्रांति की आज जरुरत

जन गण मन को जगाने की


रोज शहीद हुआ करते हैं 

सैनिक सीमाओं पर ,

फिर भी दिल्ली क्यों चुप

दिखती

ऐसी घटनाओं पर ?

बस केवल दो चार दिवस

अफ़सोस जताया जाता है

उनकी वीर कथाओं का 

गुणगान सुनाया जाता है


भाषण- भूषण दौड़ा- दौड़ी

जनता को बस दिखलाने की

एक क्रांति की आज जरुरत

जन गण मन को जगाने की


आज तिरंगा जाने क्यों मायूस 

दिखाई पड़ता है ? राष्ट्रगान में

शौर्य नहीं अब शोर सुनाई

पड़ता है

लोकतंत्र की अरथी उठती

मगर किसे परवाह है

अपनी कुर्सी रहे सलामत

नहीं और कुछ चाह है


रोज- रोज वादे करते जनता 

को फिर से फुसलाने की

एक क्रांति की आज जरुरत

जन गण मन को जगाने की


भ्रष्ट्राचार और अनाचार से धरा

हो गई है बोझिल

प्रेम और सौहार्द्र से सूखे सभ्य

जनों के दिखते दिल

इज्ज़त बे-इज्ज़त होने में कोई

समय नहीं लगता है अपराधी सीना

ताने अब कानून को गाली देता है


क्या यही था भारत का सपना

जिस पर मर मिट जाने की ?

एक क्रांति की आज जरुरत

जन गण मन को जगाने की



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